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कविता का जन्म
कविता का जन्म
जीवन के मंच पर
अनेकों रुपों में जन्म लेती है कविता
कोई जरुरी नहीं कि सुख में ही जन्म हो
असहाय दर्द से भी जन्म लेती है कविता ।
ब्रह्माण्ड के पटल पर
सूर्य के प्रकाश में नई चेतना से ही नहीं
संघर्ष भरे अंधेरे रास्तों से गुजरते हुए भी
उपज सकती है एक कविता।
पृथ्वी की सतह पर
हरे भरे खेत खलिहानों से ही नहीं
दुर्गम पथरीले रास्तों के मध्य में भी
पनप सकती है कविता।
गहरे सागर के तल से
मंथन में अमृत निकलने पर ही नहीं
जीवन में अनेकों त्याग और बलिदानों
में भी उत्पन्न होती है कविता।
सिर्फ सोच ही नहीं
मन को भी सुदृढ़ कर सकती है कविता
अनेकों झंझावातों से बाहर निकालकर
नए जीवन को जन्म दे सकती है कविता।
© Dr Pawan Kumar Pokhariyal
जीवन के मंच पर
अनेकों रुपों में जन्म लेती है कविता
कोई जरुरी नहीं कि सुख में ही जन्म हो
असहाय दर्द से भी जन्म लेती है कविता ।
ब्रह्माण्ड के पटल पर
सूर्य के प्रकाश में नई चेतना से ही नहीं
संघर्ष भरे अंधेरे रास्तों से गुजरते हुए भी
उपज सकती है एक कविता।
पृथ्वी की सतह पर
हरे भरे खेत खलिहानों से ही नहीं
दुर्गम पथरीले रास्तों के मध्य में भी
पनप सकती है कविता।
गहरे सागर के तल से
मंथन में अमृत निकलने पर ही नहीं
जीवन में अनेकों त्याग और बलिदानों
में भी उत्पन्न होती है कविता।
सिर्फ सोच ही नहीं
मन को भी सुदृढ़ कर सकती है कविता
अनेकों झंझावातों से बाहर निकालकर
नए जीवन को जन्म दे सकती है कविता।
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