सोलह कारण भावना
या संसार में रे तीर्थंकर सही मार्ग दर्शावे
सब दुखी है सही ज्ञान बिना
जिनवाणी सत् वचन बोले
सोलह कारण भावना भाके
तीर्थंकर पद पावे
सोहलकरण भावना भाके तीर्थंकर पद पावे
1 दर्शन विशुद्धि
स्व की सुधि आवे जीव को
दर्शन विशुद्धि करता
सम्यक दर्शन सहित भावों से
विशुद्धि भावना भाता
2 विनय सपन्नता
विनय भावना करते
मोक्ष द्वार खुल जाता
गुरु को आदर सत्कार कर
विनय युक्त हो जाता
3 शीलवृत्वन्तिकार भावना
सत्य अहिंसा अचोर्य
ब्रह्मचर्य अपग्रह व्रत है
क्रोधादिक् का त्याग कर
शील व्रत पालन करता
4 अभिक्ष्ण ज्ञानोप्रयोग
निरंतर उपयोग को
अपने ज्ञान में लगता
दव्य शुत भाव शुत में
ज्ञानों पयोग करता
5 संवेग भावना
इष्ट वियोग अनिष्ट सयोग
इनसे भयभीत रहता
धर्म और धर्म के फल में
सदा हर्ष प्रभुदित रहता
6 शक्तितसत्याग भावना
शक्ति नूसार त्याग कर
दानादि सुपात को देता
शरीर से ममत्त्व शून्य कर
पापो का विसर्जन करता
7 शाक्तित स्तप भावना
कर्म निर्जरा के लिये
सयम तप धारण करता
विषय कषाय को रोके
इच्छा निरोधम तप करता
8 साधू समाधि भावना
शरीर कषाय कृष करे
आत्म हितार्थ व्रतो को धरता
सल्लेखना सहित समाधि
मरण को धारण करता
9 वैयावृत्ति भावना
रत्नत्रय मय गुरु के
संघ की सेवा करता
रोगों की ओषधि से
गुरुओ की रक्षा करता
10 अर्हत भक्ति भावना
चार घातियाँ क्षय करके
जो अरहंत बने है
उन अरहंतो के गुणों की
स्तवन पूजन भक्ति करता
11 आचार्य भक्ति भावना
दीक्षा शिक्षा देते जो
छट् आवश्यक पालन करते
ऐसे गुरुओ आस्था कर
आचार्य की भक्ति करता
12 बहु शुत भावना
बाहर अंगो के पारगामी
उपाध्याय बहु शुत है
ऐसे शुत के धारक
बहु शुत भक्ति करता
13 प्रवचन भक्ति भावना
तीर्थकर से खिरी हैं वाणी
वही वाणी प्रवचन है
द्वादशांग प्रवचन वाणी
पर वो श्रद्धा रखता
14 आवश्यक कारीगरीय
छ आवश्यक सामयिक
क्रियाएँ प्रतिदिन करता
आत्म रत्नत्रय में रोज़
यथा काल निवास करता
15 मार्ग प्रभावना
पूजन भक्ति धनदि से
धर्म प्रभावना करता
प्रभुं के मत को उजागर कर
मार्ग प्रभावना करता
16 प्रवचन वात्सल्य भावना
द्वादशांग मय वाणी सुनता
उनमे वात्सल्य रखता
मुनि आयिका सम्यक् दृष्टि
सयमी से वात्सल्य रखता
सारे जीव सदा सुख होवे
ऐसी भावना भाता रहता
यही जीव तीर्थंकर बनाता
आगम सब तक पहुँचता