...

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पारखी
मैं आशा में बैठा हूं
कब सुबह होगी ?
फूल खिलेंगे, मैं फूल तोड़ूंगा।
ए मसखरे, तू हंसना मत !
बैठना मुझे है ,
रात मुझे बितानी है,
मैं देख रहा हूं- फूल लगे हैं और
मैं देख रहा हूं उस फूल को
जो कल खिलनेवाले हैं;
उस फूल की पहचान है मुझे।
प्रभात एक सत्य है ,
प्रकृति एक सत्य है,
यह होगा -
चाहे खिलना हो या मजाक।
सत्य ही विश्वास है,
सो मैं हर्षित हूंँ खिलने को
अकेले संकल्प के साथ
निडर, निश्चिंत और निर्लज्ज ।
मुझे पागल, बेवकूफ, बदमाश और
ना जाने क्या-क्या कहनेवाले !
तू हंँसो, हंँस रहे हो,
हंँसी तेरी एक आदत है ,
किसी का मजाक तुम्हारा स्वभाव है
इसका कोई अर्थ नहीं है
कोई स्तित्व नहीं है
आंखों में चूना और गालों पे काजल
हां,मैं ठीक हूं
हा..हा मैं ठीक हूं मैं ठीक हूं।


© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'