...

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गुस्ताखी।
गुस्ताख मुझे कहने वाले
बस मैं यह कह लेता हूँ
अपने गिरेबां में झांकने का
क्या रब तेरा
कोई वक्त तुझे भी देता है।।
अशिष्ट मैं तुम कह लेते हो
बता तो देते
किस तरह अपमान तेरा किया
चुप सहने की कीमत देता हूँ
अभव्य तूने संग मेरे किया।।
हर बार अरि मुझे बना दिया
तुम कैसे से संगी संग रहे
वक्त की गति पर रंज है
क्या कहूँ सब सहना है
चाहे फिर तेरा कोई तंज रहे।।
जो तूने कहा
चल सब करता हूँ स्वीकार
पर विनित हूँ सिर झुका
न कर कोई चीत्कार
चुप से बता न
मेरी खता मेरे यार।।
✍️राजीव जिया कुमार,
सासाराम, रोहतास, बिहार।


© rajiv kumar