...

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विविधता दुनिया की....
है मनमोहक बड़ी ये दुनिया
जो करना है तुम्हे महसूस इसे तो
तुम ढुंढो खुद के भीतर एक
खूबसूरत नजरिया..
खिला के फुल प्रसंन्चित् मन का
मानवता के साथ मुस्कुराना होगा..
हर बढ़ते कदम पे हमें
नज़र जिस ओर जाए उस हर ओर हमें
मिलेगी एक नई दुनिया
जो बसी है अनेको विविधताओं से..
जो ना बैठा पाते सामंजस्य हम
दुनिया और नजरिया का अपने,
हो कुंठित, हो जाते है पस्त जो
हम नजरिये से अपने,
चिढ़ती है दुनिया, ये बनाती है मजाक हमारा,
मिटा कुंठा हृदय की अपने
जला दीप समानता का हृदय मे अपने
हमें मुस्कुराना होगा..
है खुशबु जो विविधाताओ की
हमें उसे अपनाना होगा..
है मनमोहक बड़ी ये दुनिया
जो करना है तुम्हे महसूस इसे तो
इस दुनिया की विविधाताओ की
खुशबु को मिला अपने रगो में
खुद को महकना होगा और महकाना होगा_!!
© दीपक