...

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रूठ भी जाया करो।
देखो,
कभी कभी रूठ भी जाया करो,
और मैं फिर तुम्हें
मनाने के लिए तड़प उठूंगी...
कभी मिन्नतें करुँगी,
कभी बाल सवारूँगी,
कभी आँख मिला कर मुस्कुराऊगी,
कभी आँचल लहरा के सताऊंगी
बिना शक़्कर की चाय का घूँट लिया हो,
कभी ऐसा मुँह बनाओगी।
कभी टकटकी लगा कर देखूंगी
फिर बोहें चढ़ा के इतराओंगी।
कभी जूठी चोट का बहाना...