...

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स्वयंभू
स्वयं को स्वयंभू मत समझ रे
अगर ऐसा होता, तो सब कुछ
तेरे मन का होता,
शम्बो तू ही कहलाता...
सब कुछ इच्छा से प्राप्त नहीं होता
ना तू अपनी इच्छा से आया
ना तू अपनी इच्छा से जायेगा
यही माया की काया है
यही खेल है, खेलता रह जायेगा...
© Bikramjit Sen