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मेरा तप
मेरा तप

मेरे तप का फल कहाँ है, मेरे ईश्वर.....
ना आस थी, ना उम्मीद , उसे पाने की|

छोड चुकी थी, उसे पाने के ख्वाब मै,
फिर पता नहीं क्यो?
तूने परखा मुझे, तराशा मेरी चाहत को.....
हद देखनी चाही तूने , मेरी चाहत की.....

डटी रही मै अपने तप मे,
हर असंभव कोशिशें भी की....

आखिरी मे तूने कह दिया
इन दिलो का मिलना लिखा नहीं, मेरी किस्मत मे.....

मैने भी कह दिया...
ना बना तू मुझे उसकी राधा और ना ही मीरा....
हिम्मत दे मुझे, बनू मै उसके नाम की जोगन ...

तूने तो मुझसे मेरी ये हिम्मत भी छिन ली.....

कहाँ है, तू
और कहाँ है, मेरे तप का फल
कहाँ है, भोले तू , कहाँ है, तेरी महिमा
कहाँ है, तू कान्हा, कहाँ है, तेरी लीला
कहाँ है, तू.....
कहाँ है, तू.....
मेरे तप का फल कहाँ है, मेरे ईश्वर.....

🖊लेखक - पूजा श्रीवास्तव🖊