...

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थकान और मै....
हूँ चाहता नही की थकूँ मै
पर फिर भी थक जाता हूँ मै
ना चाहते हुए भी राह में रुक जाता हूँ मै,
है वजह क्या थकान की ना जान पाता हूँ मै,
कभी रुतबे से डर के तो कभी सम्मान में मर के
घूँट कड़वा इस जहर का रोज़ पी जाता हूँ मै
हूँ चाहता नही की थकूँ मै
पर फिर भी थक जाता हूँ मै,
सोचता हूँ मै हर सुबह की होगी ना आज मुलाकात थकान से,
हूँ छिपता और बचता रहता अपने काम से,
पर भूल जाता हूँ ये की इंसान हूँ मै,
हक़ मेरा कोई नही उस थकान का कर्जदार हूँ मै,
लाख कोशिशों के बाद भी इसे झुठला नही पाता हूँ मै,
हूँ चाहता नही की थकूँ मै
पर फिर भी थक जाता हूँ मै,
आँख में ना नींद है, मन भी बड़ा बेचैन है
है सख़्त बड़ा ये थकान है, रहता मौज मे हर रैन है,
हर हौसले को तोड़ती है इस थकान की यातना,
की ना रुकें कभी उठे कदम इसकी कितनी भी करू प्रार्थना,
है थकान ही पहचान मेरी ये क्यूँ नही मै जान पाता हूँ,
हूँ चाहता नही की थकूँ मै
पर फिर भी थक जाता हूँ मै_!!
© दीपक