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बहू हूँ आभिशाप नहीं------1
बहू हूँ तुम्हारे घर की अभिशाप ना समझना
एक मां को आंखों में बसाई थी अब दूसरे मां को सीने से लगाने आई हूँ
एक मां का दिल तोड़ के दूसरे मां से रिश्ता जोड़ने आई हूँ
अपना बचपन का आंगन छोड़ के तेरे आंगन को अपना बनाने आई हूँ
अपनी प्यारी सी दुनिया छोड़ के फिर से तेरे लिए तेरे घर को स्वर्ग बनाने आई हूँ
बहू हूँ तुम्हारे घर की अभिशाप ना समझना
ये न सोचना अपने आँचल से तेरे लाल को बांध के रखूगी
बल्कि आपना आंचल तेरे चरणों में बिछाने आई हूँ
ये न सोचना मैं अपने हाथों से तेरे लाल को खाना खिलाउगी
मैं तो ये सोच के आई हूँ हमदोनो आपको खाना खिलाएँ
आपका हाथ जब भी उठे तो हमारे आशीर्वाद के लिए उठे
आप जब भी बोले हमें तो हमारी गलती बताएँ
आपकी डांट कभी न मिले हमें ये मेरी गुजारिश है मेरे इश्वर से
बहू हूँ तुम्हारे घर की अभिशाप ना समझना।



© abha