...

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चलो अच्छा हुआ,
मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया,
चलो अच्छा हुआ।
दिल लगाने से पहले ही तोड़ दिया,
चलो अच्छा हुआ।
मिलने की सिफारिश तुम्हीं करते थे न,
घर बताने से पहले मुहल्ला छोड़ दिया,
चलो अच्छा हुआ।
अच्छा हुआ कि तुम रकीब हो गए,
किसी गैर के ही सही करीब हो गए।
रूह की इबादत ठुकराकर चल दिए,
जिस्मानी मोहब्बत से अमीर हो गए।
मुझसे बिछड़ने का तुम्हारा ही फैसला था,
कुछ कहा नहीं सब सुन लिया
ये मेरा ही हौसला था
अब न होगी कोई साहिबा न ही कोई मिर्जा होगा,
जिस्म से जिस्म की मोहब्बत होगी
किसी पर भी रूह का न कोई कर्जा होगा।
तुम्हें तो बस मेरे ही हाथों की बनाई खीर पसंद थी,
फिर कैसे किसी और राझें की हीर पसंद की।
हम साथ हो जिसमें तुम्हें वही तक़दीर पसंद थी,
फिर क्या हुआ तुमने किसी गैर की जागीर पसंद की।
तुम्हें मेरे हाथ के बने नान पसन्द थे
फिर कैसे किसी के हाथ की रोटियाँ भा गई,
दिल नोच कर मेरा खा गए मेरे जिस्म की बोटियाँ भा गई।
तुम तो मेरे खुले बालों पर मरते थे साहिब,
फिर कैसे किसी की बधी हुई चोटियाँ भा गई।
अब तुम्हारे नाम का कोई फूल मेरे बागों में नही खिलेंगे,
तुम हकीकत में तरसोगे और हम तुम्हें ख्वाबों में भी नहीं मिलेंगे।
मिल जायेंगे किसी को पन्ने में मेरे सूखे हुऐ गज़ल,
पर मेरे नज़्म कभी भी तुम्हारे किताबों को नही मिलेंगे।