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जरा सलाम तो करो इन्हे
कोमल कलियों सी ये दुनिया में आती है । अपने पिता की परियां कहलाती है । चहकती चिड़ियों सी घर के आंगन की शान है ये, कानून से कठोर नियम जो घर के फिर भी हस्ती मुस्कुराती पालन ये करे । जान इनमे सबकी बसे फिर भी पराया धन कहलाती । एक ही जीवन में कई किरदार ये निभाती । डरकर भी निडर केसे बन जाती । विदा होने की जब बारी आती अरमानों को को दिल में छुपाकर आसुओं को आखों में लिए ये कैसे चली जाती । जरा रोको तो इन्हे और गले से लगाकर कह दो इनसे एक बार प्यारी सी मुस्कान के पीछे कोई डर तो नही हैना । पलट जाओ हम यही हैना । पराया धन नही खुशियो की बारिश हो तुम ।
© Aman Jain