हे कान्हा!
हे कान्हा,
तुम्हारा ये नटखट स्वभाव कहूँ,
या तुम्हारा आकर्षित रूप,
जो तुम्हे देखते ही गोपियाँ,
मंत्रमुग्ध हो जाती हैं।
हे कान्हा,
तुम्हारा ये साँवला रंग कहूँ,
या मीठी तुम्हारी वंशी की धुन,
जो गोकुल की सारी गईयां,
तुम पर वारी वारी जाती हैं।
हे कान्हा,
तुम्हारा कोमल हृदय कहूँ,
या मीठी तुम्हारी बोली,
जो हर मईया के दिल पर,
तुम यूँ राज करते हो।
हे कान्हा,
तुम्हारा अभिन्न स्वरूप कहूँ,
या नयनों का तुम्हारा खेल,
जिससे तुम,
सबको घायल कर जाते हो।
हे कान्हा,
तुम्हे अपना सबसे प्रिय सखा कहूँ,
या ईश्वर का अवतार,
जिससे तुम,
सारी सृष्टि चलाते हो।
हे कान्हा,
तुम्हे माखनचोर कहूँ,
या हमारे प्यारे कन्हैया,
तुम्हे मैं कुछ भी कहूँ,
तुम सदैव ही,
हमारे हृदय पर राज जमाते हो।।
© unnati
तुम्हारा ये नटखट स्वभाव कहूँ,
या तुम्हारा आकर्षित रूप,
जो तुम्हे देखते ही गोपियाँ,
मंत्रमुग्ध हो जाती हैं।
हे कान्हा,
तुम्हारा ये साँवला रंग कहूँ,
या मीठी तुम्हारी वंशी की धुन,
जो गोकुल की सारी गईयां,
तुम पर वारी वारी जाती हैं।
हे कान्हा,
तुम्हारा कोमल हृदय कहूँ,
या मीठी तुम्हारी बोली,
जो हर मईया के दिल पर,
तुम यूँ राज करते हो।
हे कान्हा,
तुम्हारा अभिन्न स्वरूप कहूँ,
या नयनों का तुम्हारा खेल,
जिससे तुम,
सबको घायल कर जाते हो।
हे कान्हा,
तुम्हे अपना सबसे प्रिय सखा कहूँ,
या ईश्वर का अवतार,
जिससे तुम,
सारी सृष्टि चलाते हो।
हे कान्हा,
तुम्हे माखनचोर कहूँ,
या हमारे प्यारे कन्हैया,
तुम्हे मैं कुछ भी कहूँ,
तुम सदैव ही,
हमारे हृदय पर राज जमाते हो।।
© unnati