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शहर की भीड़
शहर की भीड़ में खो गई कुछ तितलियां ,बुलबुलें, और कोयलें,

फूलों के ऊपर से गायब हो गए सुनहरे काले- काले से भौंरे ,

गायब हो गई मेरे बचपन की यादें,
मिट्टी के खिलौने,
छुपा- छुपी की खेल ,दूब के मखमली बिछौने ,
आम के झूले, और खट्टी कैंरियां, उगना बंद हो गई अब तो, झड़बेरियां,
रास्ते से गायब हो गई है ,घंटी बजाती साइकिलें,
आना बंद हो गई न्यू ईयर,दिवाली पर ग्रीटिंगें ,
है पोस्टकार्ड ,अंतर्देशीय ,पत्र बात गुजरे जमाने की ;
महकती नहीं किसी बगीचे में मेहंदी और गुलमेन्हदियां;

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