...

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एक और उम्मीद।।।
बहुत जल्दी बहुत दूर निकल आई हूं,
मगर सफर बहुत डरावना था।
जहां सब कुछ था मगर ,कुछ भी अपना नहीं था।
बहुत कुछ भूलने की चाहत में,
सब कुछ याद रह गया।
उस शहर को तो छोड़ आई हूं मगर,
वहां कई मिन्नत और फरियाद रह गया।
मलाल आज भी है कि हमने कोशिश ही कम की,
कई कोशिश करने के बाद भी मलाल रह गया।
यह आंखें तरसी बहुत थी रातों में बरसी बहुत थी,
सुबह होते ही कई रोज इनमें मस्ती भी बहुत थी।
जो कभी कमता ही नहीं था,
वो बेशुमार डर था इन आंखों में।
जो अक्सर बढ़ता ही जाता था,
वह बे इंतेहा दर्द था इन आंखों में।
वह तकिये याद है अभी भी,
जो अक्सर सहारा देते थे।
इन्हीं हालातो में कई दिन कई रात निकल गए।।
एक उम्मीद के चक्कर में,
कई जज्बात गुजर गए ।
लोगों की बातें खंजर तो नहीं थी बेशक,
मगर चूभती बहुत थी।
हम जो समझाने निकले थे,
खुद के हालात सबको।
उम्मीद लेकर की कोई समझेगा जरूर,
उम्मीद तो टूटी ही मुर्शद हालात और बिगड़ गए।
और अब जो दबा के अंदर सब कुछ बेउम्मीद बैठे हैं,
टकरा गए किसी से और सारे जज्बात निकल गए।
कमबख्त फिर से उम्मीद के सारे तार खुल गए।।
बड़ी मिन्नतों से पाया था खुद को।
एक और उम्मीद के चक्कर में
फिर से सारे जज्बात निकल गए।।।।।।।।।


© Sohani kashyap