...

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बातें

कितनी बातें हैं कहने की।
संजीदा कुछ, कुछ हंसने की।

कितने किस्से उम्मीदों के,
गिरने की, गिरकर उठने की।

फूलों की मुस्कान भरी कुछ,
कांटों के पग में चुभने की।

हर पल में युग-युग जीने की,
तिल-तिल कर प्रतिक्षण मरने की।

प्यार भरी बातें भी हैं, कुछ,
रिश्तों में काई जमने की।

कुछ लहरों के संग बहने की,
कुछ तूफानों संग लड़ने की।

शर्म ओ हया की बातें भी हैं,
कुछ बेबाक़ी से कहने की।

© इन्दु