...

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स्त्री
जिंदगी के इस पर्यावरण का,,
स्त्री एक विशाल सा पेड़ हैं।
कभी गर्म तो कभी नर्म सी,,
स्त्री धूप छांव का एक प्यारा सा सुमेल हैं।
वह घर जनत से कम नहीं,,जिस घर को
माॅं ,बहन और प्यार पत्नी का मिल जाता।
जब मुस्कान बिखेरती खिली धूप जैसी,,,
घर का पूरा पर्यावरण खिल जाता।
कभी बच्चों के लिए तो कभी पति की खातिर,,,,
अपने सब शौंक भुलाती हैं।
ख़ून पसीने से सींच कर,,,
एक एक डाली (रिश्ते) को मजबूत बनाती हैं।
घर का हर एक पौधा बढ़े फूले,,,
स्त्री हर दिन कामना करती हैं।
बड़ी मजबूत जड़ें है इस पेड़ की,,,
जिंदगी के तूफानों से ना डरती हैं।
शब्दों में ना बयां होगा,,,
स्त्री के अस्तित्व का  ना कोई अंत है।
हजारों दर्द सीने में दफन रखतीं,,,
स्त्री की सहन शक्ति बहुत अनन्त है।
हाथ जोड़ कर मैं नमन करूं,,,
स्त्री के जैसे मुश्किलों से ना कोई लड़ सकता।
जब काली बनकर अवतार लेती,,,
फिर उसके आगे शिव शंकर भी नहीं खड़ सकता।
जैसे मछली के जीवन के लिए,,,
पानी का होना जरूरी हैं।
वैसे ही स्त्री रूपी पेड़ बिना,,,
हर घर की नींव अधूरी है।
स्त्री एक खुशबूदार सा फूल है,,,
चारों तरफ़ महक बिखेरतीं हैं।
छोटा हो यां हो बड़ा,हर रिश्ते को,,
अपने ममता के आंचल में समेटती है।
स्त्री है तो यह सृष्टि है,,,
बिना स्त्री के ना किसी का कोई वजूद है।
स्त्री तो ममता का वो भंडार हैं,,
जो प्यार बनकर पूरे पर्यावरण में मौजूद हैं।

✍️✍️✍️ परमजीत कौर