...

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"शहरों की चकाचौंध रौशनी"


"शहरों की चकाचौंध रौशनी, बातें यहाँ की हैं निराली,
आया मैं भी शहर में जब, देख यहाँ की ये खुशहाली,
🤩🤠🤠😎🤩
ऊँची-ऊँची बनी ईमारत, धूप नहीं दिखती प्यारी,
एक के ऊपर एक रहते हैं, भीड़ भरी सारी गलियारी,
पत्थर ही पत्थर दिखते, जाने कहाँ गई हरियाली,
पेड़ काटकर घर बने हैं, और उजाड़ी बगिया सारी,
🏢🏬
चलना फिरना भी मुश्किल, गाड़ियां होती ढेर सारी,
सड़क के ऊपर सड़क बनी है, उसके ऊपर रेलगाड़ी,
सीधे हाथ मोटर साईकिल, उसके बराबर ऑटो न्यारी,
उलटे हाथ कारें चलती, सड़क से उतरी जनता सारी,
🚗🛻🚐🚝🚝😆😆😆
भागम-भाग लगी रहती, नहीं ज़िंदगी किसी को प्यारी,
मोटर तेज़ दौड़ा-दौड़ा कर, दिखाते हैं फिर होशियारी,
रिक्शों की भरमार यहाँ पर, ढूँढते हैं ये सवारी,
एक बुलाओ दस रुकते हैं, उनमें भी भीड़ ढेर सारी,
😝😝😝🛺🛺🛺🛺😛😜😜
धक्कमधक्का होती रहती, भीड़ दिखती भरकम भारी,
शोर-शराबा मचा पड़ा है, शायद कोई है ख़राबी,
समय नहीं है पास किसी के, खो गई है दुनियादारी,
उठाया मैंने बोरी-बिस्तरा, पकड़ी अपने गाँव की गाड़ी,"
🥴🥴🥴🥴☹️☹️

ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination