...

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सर्दी की रात
वो गुनगुनी सी धूप
वो रज़ाइयों की गरमाहट,
वो ग़ज़्ज़क की ख़ुशबू
वो मूँगफली की कुरमुराहट,

बस एक लफ्ज़ "सर्दी" से ही
चेहरे पर मुस्कान आ जाती है,
गर्मी में झुलसे चेहरों पर
गुलाबी रंगत खिल जाती है,

कंपकंपा देने वाली सर्दी की
ठंडी और निष्ठुर रातों में,
हम सोये रहते रज़ाइयों में
लेकर हाथों को हाथों में,

क्या कभी किसी ने सोचा ये
क्या करते होंगे वो सब लोग,
न सिर पर जिनके छत है कोई
न खाने को हैं छप्पन भोग,

क्या होगा कोई कंबल
जो तन उनका ढक देगा
कड़कती हुई सर्दी से
उनको थोड़ी राहत देगा

क्या जल पाया होगा चूल्हा आज
दे पाया होगा कोई राहत ,
कुछ पेट को कुछ तन को उनके
कुछ पल की बादशाहत,

सर्दी की रातों का ख़ौफ़ उन्हें
वो डरते हैं इन रातों से,
कैसे खुद को बचा पाएंगे वो
गिरते पारे के आघातों से,

गर अपने हिस्से से हम सब
बस थोड़ा थोड़ा बांट सकें
सर्दी का ये सुंदर चेहरा
उनके मन में भी झाँक सके

वो भी सर्दी के मज़े लेंगे
फिर बदनाम न ये मौसम होगा,
हर कोई लुत्फ़ उठाएगा ...गुलाबी सबका रंग होगा😊😊😊
अर्चना 😊😊
© archna