...

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" मेरी आत्मा "

एक बार मुझसे मिल , मिला दूंगी खुशियों के मंजर से
कोई दुखी ना कर पाएगा निकाल लूँगी दुखो के समुन्दर से
भरोसे पर भरोसा मत करना गर परमात्मा ना कर दू अंदर से
एक बार मुझसे मिल , मिला दूंगी खुशियों के मंजर से

दिया समय सबको अपना बने रहे मस्त कलंदर से
जीत की हासिल थोड़ी बहुत उसी में तुलना की सिकंदर से
बना दूंगी तुझे ऐसा मदारी की दुनिया नाचेगी बंदर सी
एक बार मुझसे मिल , मिला दूंगी खुशियों के मंजर से

सुनकर आत्मा की बात जवाब दिया मैंने भी जुबानी खंजर
हारी तो तुझे पुकारा कुछ ना मिला लगा माँगा किसी बंजर से
कौन नहीं चाहता स्वयंभू होना तुने ही नहीं मिलाया परमेश्वर से
अब कहती है एक बार मुझसे मिल , मिला दूंगी खुशियों ........

मुस्कुराकर बोली आत्मा मिलने आ ऐसे जैसे छूटा प्रेमी पिंजर से
कुछ पल ही सही पर मिल सर्वस्व समर्पण से
नियमित मिल निष्काम आत्म तर्पण से
ऐसे मिल हर दिन , एक दिन मिला दूंगी खुशियों के मंजर से







© Gayatri Dwivedi