...

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lockdown
न दोस्त न रिस्तेदारो से मिले हम,
न हि किसी अखबारों से मिले हम,
घर पर बैठे हैं बन कर कैदी,
हां आजकल अपने हि खयालों से मिले हम।
जो लोग कभी भूल गए थे परिवारों को,
काम काज के न मिल पाते थे हजारों को,
आज कुदरत ने दो पल शांति के देके,
मिला दिया वो टूटे परिवारों को।
हां लगता है ये महामारी बड़ी भारी है,
इसके आगे तो पूरी दुनियां हारी है।
ये कुदरत का ही तो इतना गन्दा कहर है,
जो कल तरक्की की वजह बना था,
वो आज एक सुनसान सा शहर है।