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तू फलक से यहां उतार मुझे :- ग़ज़ल
जाने किसका है इंतज़ार मुझे
क्यों नही आता है क़रार मुझे
मैने कब तुझसे ये कहा था खुदा
तू फलक से यहां उतार मुझे
तेरी मुझसे है दुश्मनी कैसी
कुछ तो अब ज़िंदगी संवार मुझे
अब मिले कोई तो वो दोस्त रहे
दूर करता है सबसे प्यार मुझे
ख़ामोशी होने क्यों नहीं देती
महफ़िल ए साज़ में शुमार मुझे
मुस्कुराती हुई मेरी तस्वीर
अब रुलाती है ज़ार ज़ार मुझे
क्यों मैं तेरे लिए ख़ामोश रहूं
अपनी बातों का है खुमार मुझे
तितलियां, भंवरे, गुल, मैं क्या जानूं
कब मिला मौसम ए बहार मुझे
आइना देखूं मैं अनन्या तो
अक्स में दिखता है दरार मुझे
क्यों नही आता है क़रार मुझे
मैने कब तुझसे ये कहा था खुदा
तू फलक से यहां उतार मुझे
तेरी मुझसे है दुश्मनी कैसी
कुछ तो अब ज़िंदगी संवार मुझे
अब मिले कोई तो वो दोस्त रहे
दूर करता है सबसे प्यार मुझे
ख़ामोशी होने क्यों नहीं देती
महफ़िल ए साज़ में शुमार मुझे
मुस्कुराती हुई मेरी तस्वीर
अब रुलाती है ज़ार ज़ार मुझे
क्यों मैं तेरे लिए ख़ामोश रहूं
अपनी बातों का है खुमार मुझे
तितलियां, भंवरे, गुल, मैं क्या जानूं
कब मिला मौसम ए बहार मुझे
आइना देखूं मैं अनन्या तो
अक्स में दिखता है दरार मुझे
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