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वक्त का ये परिंदा
वक़्त का ये परिंदा, कभी रूक नहीं पाया है,
अद्भुत परिंदा, किसी के हाथ नहीं आया है।
जो भी कद्र किया, वक़्त उसका ही होता है,
किसी को रंक तो किसी को राजा बनाया है।
वक़्त का खेल, कोई समझ नहीं पाया है,
बेवफा तवायफ की तरह, सबको लुभाया है।
किसी ने जग जीतकर, सिकंदर कहलाया,
तो किसी ने अपना, राज पाठ ही गंवाया है।
वफादार प्रियतमा की तरह गले लगाया है,
फ़लसफ़ा जिन्दगी का, सबको समझाया है।
जिन्दगी की कठिन राह में जब ठोकरें लगी,
वक़्त का परिंदा अपना पंख फड़फड़ाया है।
जिन्दगी में वक़्त ने, हमें लाचार बनाया है,
दिल से चाहने वालों को, संसार दिखाया है।
जिन्दगी में वक़्त के समक्ष हर कोई है बेबस,
वक़्त के परिंदा को, कोई पकड़ ना पाया है।
© 🙏🌹 मधुकर 🌹🙏
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