...

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जीना आता हैं
इत्तेफाक नहीं होता।
यूँ याद आना।
कुछ रह गया है अंश,
बेजुबान बेबसी सा।
काश ये आखिर हमारा होता,
पल वो होता निर्णय।
इतना मलाल नहीं होता।
ऐसे चले जा कर ,
मेरे अपने इस चाह को रख पाने को ,
दिखा गया जो लालसा सा इसे आयने में बदल जाने की।
भूरी हुई हर लिखी मेरी।
तमाशा सा सजा दिया अपना।
हर एक लफ्ज लिखते हैं,
पहुच जाता उस ओर।
कर जाता बेहिसाब गम आबाद मेरा।
अब इसी के काबिल हूँ तो सही हैं।
अगले पाठ में एक ओर नयी सीख होगी।
रुक नहीं सकती जहाँ हर बार अब गम दिखे।
अपना पाठ खुद को माना ।
इसको जान हर बार आगे ही बढूंगी ।
जीवन जीना आता है।
बस किसी के नाम कर देना,
ये मेरे हिस्से का पाठ नहीं।
जो जियेगा हर पल जिसको मेरे हिस्से की चाह नहीं ।




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