जीना आता हैं
इत्तेफाक नहीं होता।
यूँ याद आना।
कुछ रह गया है अंश,
बेजुबान बेबसी सा।
काश ये आखिर हमारा होता,
पल वो होता निर्णय।
इतना मलाल नहीं होता।
ऐसे चले जा कर ,
मेरे अपने इस चाह को रख पाने को ,
दिखा गया जो लालसा सा इसे आयने में बदल जाने की।
भूरी हुई हर लिखी मेरी।...
यूँ याद आना।
कुछ रह गया है अंश,
बेजुबान बेबसी सा।
काश ये आखिर हमारा होता,
पल वो होता निर्णय।
इतना मलाल नहीं होता।
ऐसे चले जा कर ,
मेरे अपने इस चाह को रख पाने को ,
दिखा गया जो लालसा सा इसे आयने में बदल जाने की।
भूरी हुई हर लिखी मेरी।...