...

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हज़ार
हज़ार बन गए।
दिल यहाँ जार कर गए।
देकर दिया हक,
हर समां निसार कर गए।
हज़ार थे जहाँ,
देकर,सब्र उसे अपना दुख ईकाई कर गए।
अपनाकर ढेरों का जार उसका,
उसे शून्य बनाया।
केवल अब सराह ले गए।
तुम अब बन हज़ार,
उसका एकमात्र हुए।
फिर भिन्न बन,
अपनी एकक जींदगी के,
हजारो से बन रह गये।
© 🍁frame of mìnd🍁