सदियों का पेड़
#सदियोंका_पेड़
नगर के बीचों - बीच चौराहे पर खड़ा,
बरगद दृख्त दुनिया पर दृग - दृष्टि गड़ा;
जीवन भर हर दौर करीब से नित पढ़ा,
अनंतकाल की अनंत स्मृतियों से गढ़ा।
सांझ सवेरे पवन संग छेड़ू अनुराग राग,
पंछी पुष्प जन तन मन सकल सहभाग,
ह्रदय- मन निर्मल नहिं काहू से भेदभाव,
बांटू सकल स्नेह समान पुष्प बांटे पराग।
धूप- छांव सर्दी गर्मी अद्भुत गगन माया,
मेरे तृण तले सिर्फ़ शीतल निर्मल छाया;
कठोर काया मेरी पर मन कोमल पाया,
जीवन सरल नहीं नित जीवन रण आया।
अविरल चला बनाता चक्र काल वलय,
अनेक दौर सदियां तन- मन हुए विलय;
कभी हुआ रक्तरंजित कभी हुआ मलय,
देखे अनेक पतझर टूटी ना जीवन लय।
जीवने के धूप- छांव से नित निड़र लड़ा,
आंधी - तूफान समक्ष सीना तान अड़ा;
मात्रभूमि की छह ऋतुओं में पला बढ़ा,
हर ऋतु हरा भरा पुष्प- पात अटा पड़ा।
डाल - डाल पर सजे पिक तुंड मैना नीड़,
संध्या ढले लौट आते हरन तृण पीड;
डाल बैठ बतलाए अपनी अपनी मन प्रीत,
तन मन बात...
नगर के बीचों - बीच चौराहे पर खड़ा,
बरगद दृख्त दुनिया पर दृग - दृष्टि गड़ा;
जीवन भर हर दौर करीब से नित पढ़ा,
अनंतकाल की अनंत स्मृतियों से गढ़ा।
सांझ सवेरे पवन संग छेड़ू अनुराग राग,
पंछी पुष्प जन तन मन सकल सहभाग,
ह्रदय- मन निर्मल नहिं काहू से भेदभाव,
बांटू सकल स्नेह समान पुष्प बांटे पराग।
धूप- छांव सर्दी गर्मी अद्भुत गगन माया,
मेरे तृण तले सिर्फ़ शीतल निर्मल छाया;
कठोर काया मेरी पर मन कोमल पाया,
जीवन सरल नहीं नित जीवन रण आया।
अविरल चला बनाता चक्र काल वलय,
अनेक दौर सदियां तन- मन हुए विलय;
कभी हुआ रक्तरंजित कभी हुआ मलय,
देखे अनेक पतझर टूटी ना जीवन लय।
जीवने के धूप- छांव से नित निड़र लड़ा,
आंधी - तूफान समक्ष सीना तान अड़ा;
मात्रभूमि की छह ऋतुओं में पला बढ़ा,
हर ऋतु हरा भरा पुष्प- पात अटा पड़ा।
डाल - डाल पर सजे पिक तुंड मैना नीड़,
संध्या ढले लौट आते हरन तृण पीड;
डाल बैठ बतलाए अपनी अपनी मन प्रीत,
तन मन बात...