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कांटेदार पिंजरा
        
ऐ मालिक मैं पंछी हूं खुले आसमान का परिंदा
क्या समझोगे उसकी आजादी को तुम,जो कभी न था किसी बेड़ियों में बंद,तुमने कर दिया उसके पंखों को ही शर्मिंदा
ऐ मालिक मैं पंछी हूं खुले आसमान का परिंदा
तुम दो चाहे उसे सोने की बिस्किट, चाहे तुम उसे दो चांदी का पिंजरा,लेकिन उस पंछी के लिए तो आसमान ही उसका था एक मात्र घरौंदा,
लाख कोशिश की तुमने उसे बांधने की,फिर हो गए न तुम खुद शर्मिंदा..2
पंछी हैं जो खुले आसमान का कितना करोगे तुम उसपर अपना शिकंजा
ऐ मालिक मैं पंछी हूं खुले आसमान का परिंदा
जिसने सीखा खुली वादियों से खुद को अडिग बनाना,गिरना , पड़ना,फिर संभलना वही आसमान था उसका गुरू पुराना,जो सीख चुका था कठिनाइयों से खुद को ऊंचा उठाना ,क्या तुम उसे सीखा पाओगे एक पिंजरे से आसमान की ऊंची उड़ान भरना ,
ऐ मालिक मैं पंछी हूं खुले आसमान का परिंदा
जिंदगी उस परिंदे की थी बेसक खूब,पंख जो दिए ईश्वर ने उसे ऐसे थे वो अनमोल , ऐ मालिक तुम क्या जानो मेरे इन पंखों का मोल ,जिसने कैद को उसका घर बनाया वो पिंजरा कभी न उसका घरौंदा कहलाया,इतना नादान भी न समझना की फिर से अपनी आजादी का सौदा कर लू
ऐ मालिक मैं पंछी हूं खुले आसमान का परिंदा।।।
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