...

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ये उम्र है कच्ची पक्की सी,इसमें ऐसा होता है।
कभी लगता है सब पराए हैं,
कभी सब अपने अपने से लगते हैं,
कभी सच झूठा सा लगता है,
कभी ख्वाब सच्चे लगते हैं।
ये उम्र है कच्ची पक्की सी
इसमें ऐसा होता है।

कभी कभी ये दुनिया हसीन से लगती है,
कभी कभी शकलें अपनो की, लगती हैं अनजान सी,
कभी कभी तक़दीर पर खुद से ज्यादा यकीन करते,
एक लम्हे में वो भी हम लगती है, बेईमान सी।
ये उम्र है कच्ची पक्की सी,
इसमें ऐसा होता है।

कभी कभी हर लम्हा ,जीने को जी चाहता है,
कभी कभी हर लम्हा गुजारना अज़ाब सा,
कभी लगता है प्यार...