...

8 views

उलझन
वो सुबह के इंतजार में दिन ढलते जा रहे है,
ऐ जिंदगी लगता है अब हम खलते जा रहे है,

वही शाम वही राते वही यादें वही तू ही तू,
फिर भी तेरे पहलू से देख निकलते जा रहे है,

बेबाक सी वो मासूम हसीं लबों से गिर गई,
कांटों की नफरत में फूल मसलते जा रहे है,

नही पता क्या है क्यों है किसलिये आखिर,
इन्ही उलझनों में बस यूंही उलझते जा रहे है।।
© Bansari Rathod ' ईश '

Related Stories