...

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सोचो ज़रा
💔
हाथ छुड़ा कर चल पड़ा था वो यूं ही,
कोई सबब तो बहुत बड़ा रहा होगा,

इक हद होती है इंसानी, ये जान लो,
उसने बेशक बेहद बेइंतेहा सहा होगा,


यकीनन, आंसू होंगे उसकी आंखों में,
भले उसने मुंह से कुछ न कहा होगा,

दिखा होगा खुश वो तुम्हें, ज़ाहिराना,
अंदर उसका तो पुर्जा-पुर्जा ढहा होगा,

हाथ छुड़ा के भी पलटा था वो इक बार,
सोचो ज़रा, कितना उसने तुम्हें चाहा होगा,

तुमने तो सिर्फ़ जांची बेरूखी उसकी,
आंख की कोर से कितना कुछ बहा होगा!
🌺
— Vijay Kumar
© Truly Chambyal