...

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... तो बेहतर है मर जाना
कुछ एकदम शांत,
तो कुछ थोड़े पागल जैसे
पर अपनी ओर मौत को आते देख
एक सामान्य आदमी के
सामान्य स्वभाव में
विकृति हो जाना
स्वभाविक है।

मृत्यु एक भयावह सच है।

किन्तु मृत्यु से भी
भयावह होता है
मृत्यु की डर से
इतने स्वार्थी हो जाना
की रिश्ते-नाते तक भूल जाना,
इतना डर जाना
कि अपने माँ-बाप के हीं
अर्थी को कंधा तक न देना,
कि अपनी हीं पत्नी के शव को
पहचानने से इंकार कर देना....

मृत्यु का ऐसा भय से बेहतर है मर जाना

© prabhat