...

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नारी
जन्म से पहले जिसकी तक़दीर तय हो जाती है,
साँसें लेती है मगर यह ज़िंदगी नहीं पाती है,

कुर्बानी का नाम इसका, अस्तित्व भी कुर्बान होता,
सूरत शक्ल इसकी मगर, पहचान पुरूष का ही होता,

नींव भी यही वृक्ष भी यही, मगर फल को महरूम रहे,
नारी जीवन श्राप सम, उजालों में भी पहचान सदा गुम रहे।
© khwab