किसान
विश्व हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर किसान भाईयों के लिए कुछ लिखा हूँ ।
किसान के बच्चे हैं,
किसानी करते हैं ।
प्रेम भाव के पथ पर
खेतों में सजते हैं,
कीचड़ में खेलते हैं ।
कुदाल और फावड़ा से
सिंचाई करते हैं ।
अपनी कला दिखाते हैं ।
दिन दोगुनी रात चौगुनी
मेहनत से लड़ते हैं,
नन्हे पौधों की टोली बसाते हैं ।
आकृति के चादर फैलाकर
सुन्दर दृश्य बनाते हैं,
धरती को हरयाली में समाते हैं ।
खेतों के तट पर बैठकर
गप्पें लड़ाते हैं,
खेतों से नजरें मिलाते हैं ।
कड़कती धूप में
नंगा पैर चलते हैं,
देख-रेख में जलते हैं ।
किसान के बच्चे हैं
किसानी करते हैं ।
अकाल भुखमरी और
तांडव से लड़ते हैं ,
खेत दिलों में बसाते हैं ।
बादल की गुंज पर
खुशियों के गीत गाते हैं ,
बारिश को मंगाते हैं।
कदमों से सतरंगी पर
सूर ताल मिलाते हैं,
कीचड़ की होली मनाते हैं ।
खेतों में मुंडेर पर
पंछियों की...
किसान के बच्चे हैं,
किसानी करते हैं ।
प्रेम भाव के पथ पर
खेतों में सजते हैं,
कीचड़ में खेलते हैं ।
कुदाल और फावड़ा से
सिंचाई करते हैं ।
अपनी कला दिखाते हैं ।
दिन दोगुनी रात चौगुनी
मेहनत से लड़ते हैं,
नन्हे पौधों की टोली बसाते हैं ।
आकृति के चादर फैलाकर
सुन्दर दृश्य बनाते हैं,
धरती को हरयाली में समाते हैं ।
खेतों के तट पर बैठकर
गप्पें लड़ाते हैं,
खेतों से नजरें मिलाते हैं ।
कड़कती धूप में
नंगा पैर चलते हैं,
देख-रेख में जलते हैं ।
किसान के बच्चे हैं
किसानी करते हैं ।
अकाल भुखमरी और
तांडव से लड़ते हैं ,
खेत दिलों में बसाते हैं ।
बादल की गुंज पर
खुशियों के गीत गाते हैं ,
बारिश को मंगाते हैं।
कदमों से सतरंगी पर
सूर ताल मिलाते हैं,
कीचड़ की होली मनाते हैं ।
खेतों में मुंडेर पर
पंछियों की...