...

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सिंदुर ....
प्रेम में विलीन होकर ,
ये सिंदूर रोज सजाती हूँ ...
अहसास की बूँदे ,
घुली है मेरे मन में ...
हृदय से अपने ,
प्रेम को लगाती हूँ ...

वजूद हूँ मैं ,
अपनी इस प्रेम कहानी का ...
इसकी पवित्रता का मान ,
मैं रोज अपने माथे से लगाती हूँ ....

प्रतिपल जीती हूँ मैं तुम्हें ,
तुम्हारे हृदय की ध्वनि ....
तुमसे भी पहले...