तीन अजनबी: आत्मबोध की यात्रा
#साझासपने
तीन अजनबी,
लिए तीन सपने,
चल पड़े अपने-अपने रास्ते,
मंजिलों का तो पता नहीं
बस चलते चले
अपने दिल के वास्ते।
चलते चलें,
अपनी धुन, अपनी मस्ती में,
लिए तड़पते ढेरों सवाल
और सिसकते अधूरे ज़वाब।
होकर सवार सब एक साथ,
बहते चले
ज़िंदगी की कश्ती में।
उतरते चले,
जब एक एक कर सभी सवार,
भीड़ में भी रह गए, अकेले हीं तीनों,
करते रहे किसी के मिलने का इंतजार।
नदी-नाले, ये क्षितिज, ये आकाश,
इंसान हो या जानवर, हो अंधेरा या प्रकाश,
कोई भी नहीं, कुछ भी नहीं है पास,
इतना समय भी नहीं, कि थोड़ा रो लें
और हो जाएं थोड़ा-सा उदास।
कोई नहीं खड़ा, पसारे अपनी बांहे,
बिछड़ते...
तीन अजनबी,
लिए तीन सपने,
चल पड़े अपने-अपने रास्ते,
मंजिलों का तो पता नहीं
बस चलते चले
अपने दिल के वास्ते।
चलते चलें,
अपनी धुन, अपनी मस्ती में,
लिए तड़पते ढेरों सवाल
और सिसकते अधूरे ज़वाब।
होकर सवार सब एक साथ,
बहते चले
ज़िंदगी की कश्ती में।
उतरते चले,
जब एक एक कर सभी सवार,
भीड़ में भी रह गए, अकेले हीं तीनों,
करते रहे किसी के मिलने का इंतजार।
नदी-नाले, ये क्षितिज, ये आकाश,
इंसान हो या जानवर, हो अंधेरा या प्रकाश,
कोई भी नहीं, कुछ भी नहीं है पास,
इतना समय भी नहीं, कि थोड़ा रो लें
और हो जाएं थोड़ा-सा उदास।
कोई नहीं खड़ा, पसारे अपनी बांहे,
बिछड़ते...