...

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संघर्ष
#स्वतंत्रता_प्रयास

खामोश से इन लम्हो पर ,भर दे जुनून का राग फिर
कोरे जो पन्ने है यहां ,लिख दो नयी अब दास्तां
पेचीदा चाहे हर सफर ,धीरज को न पर छोड़ मन
छद्मो से लिप्त यह व्यस्तता,व्यसन का बनती द्वार कल
निष्फल सी अंधी दौड़ मे ,त्यजता है निज अस्तित्त्व भी
होकर कही गुमसुम हंसी,खोजे यहां निज का पता
बिसरा गया सुध सुकून अब ,सुषुप्त है निज भावना
फेककर भ्रामक वसन,थाम ले बांह चाह की
अंतर्निहित है द्वंद जो ,माना है भीषण युद्ध वो
नवचेतना का ले कमान ,अर्जुन सा वारो सर्वस्व अब
ठोकर तो है बस इक पहल ,बन जायेगी राह भी सुगम
कुंठित हो चाहे अभी का क्षण,होकर वशीभूत मत ठहर
न ओर न कोई छोर है,पर बांधना हर डोर है
पुष्पित नही तो क्या हुआ, मधुबन सजाता तो माली है।
अविचल अमिट है न यह क्लेश,तो रोष कैसा लिपट रहा?
राही तो राहो मे मिलते रहे , आते कही जाते कभी
मोहक से सुंदर सफर मे ,बिसरा नही निज श्वास पर
न अंत न आरंभ है ,फिर डर है क्या ?खोना किसे?
हर विडम्बना करके दफा,चल दो जरा ,कर मन को सफा।
श्रेया मिश्रा