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एक शाम
रहमत-ए-शाम भी अजीब हुई
आयी और ढल गयी
कोई देखता रह गया
कोई सोचता रह गया
कोई संभल सा गया और कोइ बहकता रह गया
आसमानो में हो गई अजीब सी जुर्रत
फलक पर चाँद की खूबसूरती ऐसी थी
की सूरज उसकी प्रीत में डूब गया
परिन्दों के मोहहले में शोर ही अलग था
नदियों का स्राव भी मद्धम से हो गया।
आयी और ढल गयी
कोई देखता रह गया
कोई सोचता रह गया
कोई संभल सा गया और कोइ बहकता रह गया
आसमानो में हो गई अजीब सी जुर्रत
फलक पर चाँद की खूबसूरती ऐसी थी
की सूरज उसकी प्रीत में डूब गया
परिन्दों के मोहहले में शोर ही अलग था
नदियों का स्राव भी मद्धम से हो गया।
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