...

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जिया जाए जी भर कर
चाँद तारों को उसने कुचला अपने तकिये मे भरकर।-
रात पूनम की थी मगर आज नही थी इतनी बेहतर।-

चाँदनी की तो मत पूछो,क्या क्या ना सह गई वो,
जिसे आना था निखर के वो आई है थक- थक कर ।-

कितने मसलों से भरी पड़ी है ना जाने ये जिन्दगी
ठाना हुआ है हमने भी इसे जीना है हँस हँस कर ।-

सूरज भी सीखा रहा है एक हुनर हमें अभिन्न,
ना उगना है घमंड से ना डूबना है डर डर कर।-

ना हार कर है जीना,ना जीना है जीतकर,
जीना वही है जीना जो जिया जाए जी भर कर ।-