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जज्बातों में बह कर आज कुछ अच्छा लिखा है
थोड़ा ही सही मगर सच्चा लिखा है
की कब तलक जिन्दगी दूसरो के नाम करू
अब लिखूं हक में खुशिया या ख्वाइशों की तरह बंद कमरे में चुन दू
जो धुंधला नकाब पहना है
क्या आज आईने सा साफ अपना अक्स दिखा दू
जो दिखता हूं वो हू नही में
क्या आज सबको बता दूं