...

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कोशिश
मैंने भी की थी कोशिश,
सपनों😇 को पंख लगाने 🦋की,
कुतर दिए पंख🦋 पहले ही
चाह थी आगे बढ़ 🏃जाने की
कह दिया मुझसे, पात्र तुम
हो बस गृहस्थी 🏠बसाने की।
रोई उस दिन बिलख - बिलख
मैं , चाह टूटी सपनों को पंख
लगाने की।😞🦋
उठ खड़ी हुई कुछ समय🕰️
बाद ही,👩‍🎓 हार न मानी मैंने
भी।
ठान ली सपनों 😊को पंख
लगाने 🧚की कुछ बड़ा कर
जाने की।👩‍🎓
छुप छुप के तैयारी करती ✍️,लोगों की सोच 🧐को हराने की ,1 दिन सपनों को अपने उड़ान 🧚दी मैंने भी 👩‍🔬हार गए वह लोग सारे, कहते थे जो स्त्री नहीं है पात्र कमाने की कुछ बड़ा कर जाने की पात्र तो है बस वह गृहस्थी 👩‍👩‍👦में खुशियां 🤰लाने की हार गए वह लोग सारे क्योंकि उड़ान भर ली मैंने भी।🧚
@ student poetry..