...

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पिता का दिल
अपने बच्चों की अँधेरे भरी राहों के "
पिता हमेशा ही दीपक बन जाते है.....
भीतर से तो वह भी नरम है "
पर ना जाने क्यों...ऊपर से खुदको,
बहुत सख्त दिखाते है,,,,!!!

लाख हो राहों मे उनकी रुकावटें "
पर हर हाल में बच्चों को वह....
मंज़िल तक पहुंचाते है "
भुलाकर वह अपने सपनों को,
बच्चों के सपनो को अपना सपना बनाते है,,,,!!!

जब किसी बच्चे को चोट लग जाती है "
उनकी आँखों में भी दर्द झलकता है....
अपने सभी बच्चों के लिए "
सिर्फ माँ का ही नही बल्कि,
पिता का भी दिल बराबर धड़कता है,,,,,!!!

बच्चे चाहे कितने भी बड़े "
क्यों,,,ना हो जाए, उनके दुखों में ....
हमेशा वह सहारा बन जाते है "
बेशक से हो वह कितने भी खफा,
पिता होने का फर्ज फिर भी निभाते है,,,,,!!!

रात - दिन एक करके वह "
अपने बच्चों के लिए....
खूबसूरत सा घर आंगन बनाते है "
भीतर से चाहे लाख तकलीफें हो उनको पर,
बच्चों के भविष्य के लिए फिर भी पैसा कमाते है,,,,!!!

वक़्त चाहे कितना भी बुरा क्यों ना हो "
लेकिन उनके मुँह से आह,,ह,,,का....
एक भी शब्द ना निकलता है "
शायद यही कारण है जो हर कोई,
पिता को बस पत्थर दिल समझता है,,,,!!!

देखकर अपने बच्चों को उदास "
सिर्फ माँ का ही नही पिता का भी.....
तो सख्त दिल पिघलता है "
कभी झांक कर देखो उनके भीतर,
बच्चों को खुश देखने के लिए ....
हर पिता का दिल तड़पता है,,,,!!!