...

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ज़िन्दगी के रंगमंच की कठपुतलियां
ज़िन्दगी के मंच पर , मोह मादक वंश पर
पुतलियां बने हुए , हम तो हैं घिरे हुए
मौत के प्रकाश से , यूं ही हम हताश से
क्यों हैं हम डरे हुए , लगते क्यों बिखरे हुए

ज़िन्दगी के मेले में हम , किरदार से बटे हुए
कोई दिखता दुखी यहां , कोई है सुखी यहां
किसी को कोई काम है , किसी का यहां नाम है
किसी को कोई दर नहीं , किसी को है कदर नहीं

ज़िन्दगी उलझी हुई , कहीं है सुलझी है
कहीं भोग...