...

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हम कैसे समझाएं?
तेरे बिन हम कितने अधूरे।
तेरे बिन हम कितने अधूरे।
तुमको हम कैसे समझाएं?

सुनी रात के अंधियारे में!
चांद अकेला चमकता जाए।
अपना दुःख किसको सुनाए।
तारे तो हैं उसके साथ मगर!
बातें भी ना कर पाए बेचारे।

रात दिन यूं ही कटती जाए।
तेरे बिन हम कितने अधूरे।
तुमको हम कैसे समझाएं?

प्रीत मेरे मनमीत मेरे सुन ले गीत मेरे!
जिस रास्ते पर संग, हम तुम चले थे!
वो हमसे मंजिल का पता पूछती जाए।
बताओ उस रस्ते को कैसे जाए।?

यादें सारी हमको झकझोरती जाए!
ख्वाब आंखों से नींद चुराती हो जाए।
दिल धड़के मन घबराए तन भी कापें।
बताओ इस बेचैनी को कैसे समझाएं।

कितने दिन बीत गए तुम ना आए।
आंखें बेचारी रास्ता ताकती जाए।
दहलीज़ पर ये हवाऐं पूछती जाए।
तुम ही बताओ उसे कैसे समझाएं।
© महज़