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खामोशी
कभी कभी बहुत दूर तक
एक खामोशी रहती है
चलती है फिरती है
खुद से कुछ कहती
खुद से कुछ सुनती है
खिड़की के परदे खुलते हैं
धूप भी ठिठक के बैठती
है उसके सिरहाने...
धूप देखती उसकी आंखो
में सवालों के समन्दर
उसके खाली हाथ
और दूर तक कोई नही
सिर्फ मोटर गाड़ियों का शोर
चिड़ियों की कूजन
गुलमोहर के झरते फूल
और कोई नही
न सुबह न शाम
दूर तलक एक तन्हाई
अंधेरा और वो
खामोशी
सब कुछ खाली खाली
तारों से जड़े आसमान के तले
Shraddha S Sahu
© Shraddha S Sahu
एक खामोशी रहती है
चलती है फिरती है
खुद से कुछ कहती
खुद से कुछ सुनती है
खिड़की के परदे खुलते हैं
धूप भी ठिठक के बैठती
है उसके सिरहाने...
धूप देखती उसकी आंखो
में सवालों के समन्दर
उसके खाली हाथ
और दूर तक कोई नही
सिर्फ मोटर गाड़ियों का शोर
चिड़ियों की कूजन
गुलमोहर के झरते फूल
और कोई नही
न सुबह न शाम
दूर तलक एक तन्हाई
अंधेरा और वो
खामोशी
सब कुछ खाली खाली
तारों से जड़े आसमान के तले
Shraddha S Sahu
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