...

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चाँद का भ्रम..
किसी में कहाँ दम था, जो चाँद को छू लेता
चाँद ही खुद उतर आया था रात की बाहों में

गुमान उसको भी थोड़ा तो था अपनी अदा पर
भूल गया सब,जब नज़ारा देखा बिखरी चाँदनी में

रात का सन्नाटा भी महफ़िल सा लगने लगा
गुफ्तगू की उसने, उन ठहरी थमी हवाओं से

जुगनुओं की देख वो चंचल सी अठखेलियाँ
भूल गया आसमाँ की रौनक भरी सितारों से

पा तो गया सब कुछ, फिर भी तन्हा ही रहा
अब दूर जो हो चुका था वो अपनी चांदनी से

होश आया तो फर्क दोनों का समझ में आया
रात तो वक्ति थी, और चाँदनी समाई थी उसमें


© * नैna *