बस प्यार और सम्मान की मांग.....
आपने कई बार खुद देखा या सुना होगा कि लोग
महिलाओं पर हाथ उठाते है,चाहे उनकी पत्नी हो या
कोई और।इसी विषय में ये मेरी कविता है....
NOTE:-ये feminist poem नहीं है, जो लोग इसे अपनी ताकत समझते है और महिलाओं का सम्मान नहीं करते है उनके लिए है।इस कविता का उद्देश्य किसी के मन को ठेस पहुंचाना नहीं है।
अगर वो चिल्लाएं झटकारे,
तुम पर अपना सारा गुस्सा उतारे,
तो तुम बस चुप रहो।
जब उसे गुस्सा आए,
तुम्हे थप्पड़-थप्पड़ मारे,
तब भी तुम सहन करो।
जवाब नहीं देना कभी
क्योंकि तुम स्त्री हो और
वो पुरुष है।
पुरुष प्रधान है सोच सबकी,
बस उसी का है अधिकार ,
स्त्री का कोई मोल नहीं,
यही मानता चला आया है संसार।
कितना मै सहुं ये सब,
घुट- घुट कर अब जी नहीं सकती,
मै भी ही इंसान,
मुझमें भी है प्राण,
इस मंद हलाहल को
अब पी नहीं सकती।
तुम मार नहीं सकते मुझे,
इसका कोई नहीं अधिकार।
इस धरा पर मैंने भी जन्म लिया है,
करो समानता का तो विचार।
दिन रात करते प्रताड़ित,
इस मानसिक तनाव का
कौन है जिम्मेदार।
क्या क्या नहीं हम करते है,
हर वक़्त तुम्हारी इच्छाओं
का ख्याल करते है।
तुम्हारी खुशियों में खुश रहते,
न कोई सवाल करते है,
तकलीफ़ तुम्हे होती
तो खुद को चिंता में बेहाल करते है।
तुम्हारे सपनों पर अपने सपने
कुर्बान करते हैं,
तुम हो सफल तो उस पर
घुमान करते है।
तुमसे कुछ नहीं बस
प्यार और सम्मान की मांग करते है।
माता पिता की भी हो ज़िम्मेदारी,
बेटी हों या बहू हो
किसी पर भी ना हाथ उठाए,
ये सिखाए बेटों को इस बारी।
© Kavyaprahar
महिलाओं पर हाथ उठाते है,चाहे उनकी पत्नी हो या
कोई और।इसी विषय में ये मेरी कविता है....
NOTE:-ये feminist poem नहीं है, जो लोग इसे अपनी ताकत समझते है और महिलाओं का सम्मान नहीं करते है उनके लिए है।इस कविता का उद्देश्य किसी के मन को ठेस पहुंचाना नहीं है।
अगर वो चिल्लाएं झटकारे,
तुम पर अपना सारा गुस्सा उतारे,
तो तुम बस चुप रहो।
जब उसे गुस्सा आए,
तुम्हे थप्पड़-थप्पड़ मारे,
तब भी तुम सहन करो।
जवाब नहीं देना कभी
क्योंकि तुम स्त्री हो और
वो पुरुष है।
पुरुष प्रधान है सोच सबकी,
बस उसी का है अधिकार ,
स्त्री का कोई मोल नहीं,
यही मानता चला आया है संसार।
कितना मै सहुं ये सब,
घुट- घुट कर अब जी नहीं सकती,
मै भी ही इंसान,
मुझमें भी है प्राण,
इस मंद हलाहल को
अब पी नहीं सकती।
तुम मार नहीं सकते मुझे,
इसका कोई नहीं अधिकार।
इस धरा पर मैंने भी जन्म लिया है,
करो समानता का तो विचार।
दिन रात करते प्रताड़ित,
इस मानसिक तनाव का
कौन है जिम्मेदार।
क्या क्या नहीं हम करते है,
हर वक़्त तुम्हारी इच्छाओं
का ख्याल करते है।
तुम्हारी खुशियों में खुश रहते,
न कोई सवाल करते है,
तकलीफ़ तुम्हे होती
तो खुद को चिंता में बेहाल करते है।
तुम्हारे सपनों पर अपने सपने
कुर्बान करते हैं,
तुम हो सफल तो उस पर
घुमान करते है।
तुमसे कुछ नहीं बस
प्यार और सम्मान की मांग करते है।
माता पिता की भी हो ज़िम्मेदारी,
बेटी हों या बहू हो
किसी पर भी ना हाथ उठाए,
ये सिखाए बेटों को इस बारी।
© Kavyaprahar
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