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दोहे
बहती धारा में सभी , बह जाते है रीत।
अथक परिश्रम से बहें ,धारा के विपरीत।।
धारा के विपरीत चल ,हुआ बहुत अपमान।
हार न मानी तब मिली,अपनी कुछ पहचान।।
जो हट कर हैं सोचते, धारा के विपरीत ।
पाते अलग मकाम वो,होती उनकी जीत।।
एक तौर पर चल रहे ,गई उमरिया बीत।
मन थोड़ा अब बह चलें,धारा के विपरीत।।
© दीp
अथक परिश्रम से बहें ,धारा के विपरीत।।
धारा के विपरीत चल ,हुआ बहुत अपमान।
हार न मानी तब मिली,अपनी कुछ पहचान।।
जो हट कर हैं सोचते, धारा के विपरीत ।
पाते अलग मकाम वो,होती उनकी जीत।।
एक तौर पर चल रहे ,गई उमरिया बीत।
मन थोड़ा अब बह चलें,धारा के विपरीत।।
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