...

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दहलीज़
कुछ सुनहरे ख़्वाब
कुछ अनदेखी हक़ीक़त
कुछ सुनी अनसुनी बातें भी
डराती लुभाती कुछ रातें भी
वो चकाचौंध वो दमखम
कहीं सजता कोई कहीं बिखरे हम
दहलीज़ के उस पार एक अनजानी दुनिया
जहाँ पंख हैं हज़ार, आसमां भी कितने
उड़ने वाले बेहद, गिरने वाले भी उतने
ये सपने सलोने जाने कितनों को बुलाते हैं,
लेकर अपनी बाहों में जीना सिखातें हैं,
कराते हैं रूबरू जीवन के हर पहलू से,
ज़िंदगी का सही ग़लत ये दिखाते हैं।
© khwab