...

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बनते - बिगड़ते बजट की कहानी देखों
आओ आओ देश की आर्थिक निशानी देखों
यहां बनते - बिगड़ते बजट की कहानी देखों
छिन्न भिन्न हो रहा है उम्मीदों का लेखा-जोखा
यहां वहां बढ़ती हुई महंगी की जवानी देखों

बातें ही बातों में हालातों के रंग दिखने लगें है
बजट के बढ़ते हाहाकार की इम्तिहानी देखों
ना जाने कितने घरों की जरूरते बिखरी हुई है
आज इक इक रुपये का क़िस्सा-कहानी देखों

सवालों में बजट का इक बवाल मचल उठा है
आज फिर कर्ज़ में लिपटी हुई ज़िंदगानी देखों
यूं ही नहीं है ये डगमगाती हुई आर्थिक रंगते
बनते बिगड़ते बजट की थोड़ी दास्तानी देखों

इस महंगी भीड़ में किसको कितना क्या मिला है
बजट के ज़िक्र से ही इन निगाहों में पानी देखों
आर्थिक स्थिति की फ़िक्र का रोज़ होता तमाशा है
चारों तरफ गुज़री हुई उम्र की भी इक रवानी देखों

ख्वाबों ख्वाहिशों के गिरते हुए बजट की बातें है
इस मतलबी दुनिया में किसकी जादू-बयानी है
मेरे सिक्कों की खनक आज कल ज़रा कम है
बनते - बिगड़ते बजट से देश की कहानी देखों

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes