...

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father's day
बदलते जमाने में खुद को बदला है उसने
बंधा है बांध बदल कर अपनी सोच का उसने
ताकि 19वीं की नींव पर 21वीं का भविष्य बना सके
अपनी रेंगती हुई जिंदगी से अपने बच्चों को रफ्तार दिला सके
अपनी साइकिल का टक्कर बच्चों की कार से करा सके
पल पल टूटती हुई ख्वाबों पर बच्चों की उम्मीदों का इबारत बना सके
अपनी बेटी की उम्मीद और अपने बेटे का ख्वाब सजा सके
अपनी वजूद को मिटा कर अपने बच्चों का वजूद बचा सके
करता है सब वो काम जो उसके परिवार के चेहरे पर खुशियां ला सके
मां चाक और पिता कुम्हार बनता है ताकि कीमत अस्तित्व विहीन मिट्टी का बढ़ा सके
भूलाकर अपनी पहचान करता कड़ी मेहनत ताकि बच्चों को अपनी पहचान दिला सके।
© 𝕽𝖆𝖘𝖍𝖒𝖎,🌄